कंप्यूटर मॉनिटर का इतिहास एवं विकास

मॉनीटर्स इनपुट किए डाटा को आउटपुट रूप में देखने का साधन है। हालांकि मनुष्य व कंप्यूटर के बीच का परसपर अंतर्सर्बंध या इंटरफेस पीसी से भी काफी पुराना है जबकि मॉनीटर्स में प्रयुक्त टेक्नोलॉजी मात्र एक डेढ़ दशक पुरानी है। किंतु मॉनीटर्स ने आज के स्वरूप तक आने के लिए एक लंबी विकास प्रक्रिया देखी है। कभी मॉनीटर्स में भारी भरकम CRT (कैथोड रे ट्यूब) का प्रयोग होता था किंतु आज LED तकनीक युक्त हलके, चपटे, पतले मॉनीटर्स मिलते हैं।

1855 में जर्मन वैज्ञानिक हेनरिच गिस्लर ने केथोड रे ट्यूब का आधार मॉडल तैयार किया। ट्यूब मॉनीटर का जन्मदाता यह डिवाइस गिस्लर चमकता था और आकृतियां दर्शाने में सक्षम था जिसे कालांतर में सुधारा गया।

इस घटना के 33 वर्ष उपरांत 1888 में आस्ट्रिया के रसायनविद् फ्रेडरिच रीनिट्जर ने द्रवीभूत कणों (लिक्विड क्रिस्टल्स) के ऑप्टिकल गुणों की खोज कर LED तकनीक के विकास की नींव डाली। हालांकि अभी तक इससे डिस्प्ले डिवाइस बनाने का विचार नहीं उत्पन्न हुआ था। इस दौरान मॉनीटर्स के विकास के लिए ट्यूब टेक्नोलॉजी पर काम होने लगा था किंतु लिक्विड क्रिस्टल्स को, 80 वर्षों तक रसायनिक संकल्पना मानकर उपेक्षित किया गया। तो आइये कंप्यूटर मॉनिटर का इतिहास एवं तथ्यों को जानें :

Table of contents

केथोड रे ट्यूब का जन्म

आधुनिक केथोड रे ट्यूब के आविष्कार का श्रेय कार्ल फर्डिनेंड ब्राउन को दिया जाता है क्योंकि उन्होंने ही ‘ओसिलोस्कोप’ का आविष्कार कर इस प्रकार के डिवाइस का प्रयोग किया था और इसी के आधार पर टीवी सेट्स एवं राडार स्क्रीन का विकास भी हुआ था।

1897 ई. में वैज्ञानिक जोसफ जॉन थॉमसन ने चार्ज पार्टिकल्स (आवेशित कणों) की खोज की जिन्हें इलेक्ट्रॉन कहा गया, जिससे वैज्ञानिकों को कैथोड रेज को समझने में मदद मिली। फलस्वरूप ट्यूब टेक्नोलॉजी के विकास में तेजी आई और सबसे पहले टीवी रिसेप्शन के लिए पहले सीआरटी मॉनीटर्स विकसित हुए।

इस दिशा में ब्लादिमीर कोस्मा ज्वोरिकिन ने 1929 में पहला टीवी रिसेप्शन सिस्टम बनाया तो अगले ही वर्ष 1930 में मैनफ्रेड वोन आर्डेन्न ने पहली पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक पिक्चर ट्यूब का पुनर्निर्माण किया। जबकि 1931 में एलेन बी ड्यू मोंट ने बड़े व्यावासायिक पैमाने पर उत्पादन योग्य कैथोड रे का विकास किया। इन सभी उपलब्धियों ने टेलीविजन ट्रांसमिशन एवं रिशेप्सन टेक्नोलॉजी की प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया।

लंबे तकनीकी शोध के उपरांत 70 के दशक के अंत में टीवी और कंप्यूटर मॉनीटर की दो अलग-अलग शाखाओं का जन्म हुआ। स्क्रीन पर दिखाई जाने वाली मोनोक्रोम इमेज को 720×350 पिक्सल के रेजोल्यूशन पर दिखने वाले Mono Display Adapter के निर्माण के उपरांत 1981 में आईबीएम कलर ग्राफिक्स एडॉप्टर (सीजीए) को लेकर सामने आया जो चार रंगों वाली इमेज को 160×200 पिक्सेल पर प्रस्तुत करने में सक्षम था।

हालांकि आरंभ में मॉनीटर्स या तो कंप्यूटर में ही लगे होते थे अथवा नॉन-स्टैंडर्ड केबल्स या प्लग्स के जरिए कनेक्ट होते थे। किंतु 1984 में 1000×1000 पिक्सेल रेजोल्यूशन एवं 64Hz रिफ्रेश रेट वाला 14 इंच का कलर मॉनीटर विकसित हुआ जिसे Taxan Vision नाम दिया गया जिसकी कीमत लगभग 1,28,577 रुपए थी। हालांकि कुछ वर्षों बाद मॉडर्न ग्राफिकल यूजर इंटरफेस युक्त पहला मॉनीटर्स सामने आए, जैसे कि NEC Multiscan HD, जो आज के ऑपरेटिंग सिस्टम एप्लीकेशन चलाने में भी उपयुक्त है। यद्यपि शीर्ष कंपनी ने 1988 में 14 इंच का पहला एलसीडी मॉनीटर लांच किया था किंतु किफायती दामों में यह तकनीक 10 वर्षों बाद ही जनता को सुलभ हो सकी।

1855 ई. गिस्लर ट्यूब (Geissler tube) का विकास

जर्मन वैज्ञानिक हेनरिच गिस्लर एक ऐसी ट्यूब में वैक्यूम उत्पन्न करने में सफल रहा जो पारे (मर्करी) पम्प युक्त थी। इसने कैथोड रे ट्यूब बनाने का मार्ग प्रशस्त किया जो डिस्प्ले डिवाइस बनाने की दिशा में पहला कदम था।

1859 ई. कैथोड रे की खोज

जूलियस प्लकर नामक गणितज्ञ एवं भौतिकविज्ञानी ने पहली कैथोड रेज को खोजा और उसका विस्तृत वर्णन किया।

1888 ई. लिक्विड क्रिस्टल की खोज

आस्ट्रिया के रसायनवेता फ्रेडरिच रीनिट्जर ने द्रवीभूत कणों (लिक्विड क्रिस्टल) की खोज की। उन्होंने एक ऐसे यौगिक पर प्रयोग किया जिसके स्पष्ट तौर पर दो गलनांक बिंदु (मेल्टिंग प्वाइंट) होते हैं।

1897 ई. ब्राउन ट्यूब

आधुनिक सामान्य कैथोड रे ट्यूब के आविष्कारक कार्ल फर्डिनेंड ब्राउन ने ओसिलोस्कोप में इसका पहली बार उपयोग कर एक नई उपलब्धि हासिल की। इसी के आधार पर बाद में टीवी सेट्स एवं राडार स्क्रीन का विकास हुआ।

जोसफ जॉन थॉमसन द्वारा खोजे गए आवेशित कण (चार्ज पार्टिकल) अर्थात इलेक्ट्रॉन से कैथोड रे को समझने में मदद मिली।

1929 ई. टीवी रिसेप्शन हेतु मॉनीटर्स का विकास

पहले सीआरटी मॉनीअर्स को टीवी रिसेप्शन के लिए विकसित किया गया। जो 1929 में ब्लादिमीर कोस्मा ज्वोरिकिन द्वारा विकसित किया गया था।

1930 ई. पहला इलेक्ट्रॉनिक पिक्चर रिप्रोडक्शन

मैनफ्रेड वॉन आरडेन ने 1930 में पहला पूर्णतया इलेक्ट्रॉनिक पिक्चर प्रोडक्शन विकसित किया।

1931 ई. कैथोड रे का व्यावसायिक उत्पादन

एलेन बी ड्यू मोंट द्वारा 1030 में बड़े पैमाने पर कैथोड रे ट्यूब का विकास किया गया। 1929 से 1931 तक की ये उपलब्धियां टेलीविजन ट्रांसमिशन टेक्नोलॉजी को गति देने में मील का पत्थर साबित हुई।

1963 ई. स्यानो बाईफिनायल लिक्विड क्रिस्टल की खोज

हुल विश्वविद्यालय के अंग्रेज रसायनविद् जार्ज ग्रे ने स्यानो बाईफिनायल लिक्विड क्रिस्टल की खोज की जिसने स्थिर लिक्विड क्रिस्टल पदार्थों के विकास को आधार प्रदान किया जो आज की एलसीडी तकनीक में उपयोग किए जाते हैं।

1969 ई. टी एन एलसीडी प्रभाव का विकास

जेम्स फर्मेसन नामक वैज्ञानिक ने TN-LCD (Twisted Nematic LCD) फील्ड इफेक्ट को विकसित किया जो कि लिक्विड क्रिस्टल की पारदर्शिता को नियंत्रित करने में मददगार बना। किंतु इसके पश्चात टीवी एवं कंप्यूटर मॉनीटर तकनीक के विकास के मार्ग अलग-अलग हो गए।

1980 ई. एमडीए एवं सीजीए मानकों की स्पष्टता

आईबीएम कंपनी ने Mono display adapter (MDA) एवं Colour Graphic Adapter (CGA) मानकों को स्पष्ट एवं परिभाषित किया। मोनोक्रोम एवं कलर ग्राफिक्स सिग्नल्स के मानकीकरण से आईबीएम ने वैश्विक स्तर पर कंप्यूटर मॉनीटर इंटरफेसेज के उपयोग का मार्ग प्रशस्त किया।

1981 ई. सीजीए मानक का प्रयोग

मोनोक्रोम एडॉप्टर की मदद से मोनोक्रोम इमेजिस को 720×350 पिक्सल रेजोल्यूशन पर स्क्रीन पर दिखाने में आईबीएम सफलता पाई। उसके पश्चात कंपनी ने सीजीए मानक के आधार पर चार वर्ण वाली इमेजिस को 160×200 पिक्सल रेजोल्यूशन पर प्रदर्शित किया।

1984 ई. ईजीए मानक और टेक्सन विजन

कंप्यूटर ग्राफिक्स हार्डवेयर में इंजीए मानक काफी लंबे समय तक सबसे छोटा आम मल्टीपल बना रहा और टेक्सन विजन मॉनीटर्स का हॉलमार्क बन गया। टैक्सन विजन वस्तुतः 1000×1000 पिक्सल युक्त रेजोल्यूशन एवं 64Hz रिफ्रेश रेट वाला 14 इंच का कलर मॉनीटर होता था। जिसकी कीमत लाभा 1,28,577 रुपए थी।

1988 ई. वेसा मानकों पर सहमति

अस्सी के दशक का अंत होते-होते NEC एवं आठ अन्य ग्राफिक्स कार्ड निर्माताओं ने (Video Electronic Standards Association (VESA) के साथ मिलकर सॉफ्टवेयर, ग्राफिक कार्ड एवं मॉनीटर्स के लिए मानक निर्धारित करने की पहल की।

1988 ई. शार्प ने बनाया 14 इंच का एलसीडी मॉनीटर

सत्तर के दशक के अंत में काफी तकनीकी विकास हुआ और शार्प कंपनी ने पहला 14 इंच का एलसीडी मॉनीटर बाजार में उतारा जो फिलहाल आम लोगों की पहुंच से बाहर था।

एलसीडी मॉनीटर्स का विकास

वर्ष 2000 के लगभग बाजार में एलईडी मॉनीटर्स आ चुके थे। एलईडी का यह तकनीक 70 के उत्तरार्द्ध से अब तक काफी विकसित हो चुकी थी। हालांकि 1988 में विकसित एलसीडी मॉनीटर्स ने कुछ वर्षों में नई उपलब्धियां हासिल की और कुछ वर्षों में इनकी कीमत कैथोड रे मॉनीटर्स जितनी हो गई और सीआरटी मॉनीटर्स धीरे धीरे चलन से बाहर हो गए।

फ्लैट स्क्रीन वाले एलसीडी मॉनीटर्स का चलन बढ़ा और एलईडी तकनीक युक्त मॉनीटर्स की दिशा में काम होने लगा। विकास का यह क्रम आज भी जारी है।

2000 ई. चपटी स्क्रीन का विकल्प

उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2000 में 15 इंच के मॉनीटर की कीमत लगभग 1,00,000 रुपए थी जिससे आम यूजर्स उसे नहीं खरीद सकते थे। इसी समय बाजार में एलसीडी मॉनीटर की भरमार देखने को मिली।

2005 ई. पहला 3डी डिस्प्ले मॉनीटर

तोशिबा ने ऐसा पहला 3डी डिस्प्ले जारी किया जिस पर 3डी इफेक्ट को बिना किसी अतिरिक्त टूल्स जैसे; कि 3डी चश्मे के देखा जा सकता है। किंतु इसके लिए दर्शक को एक खास स्थिति में बैठना जरूरी होता है।

2008 ई. एलसीडी से हारा सीआरटी मॉनीटर

आठ वर्षों के भीतर ही एलसीडी मॉनीटर का आकार भी बढ़ा और कीमत भी घटी। 24 इंच के हाई क्वालिटी एलसीडी मॉनीटर की कीमत 30,000 से कम हो गई। फलस्वरूप आम उपभोक्ताओं ने सीआरटी की जगह एलसीडी को अपनाया और सीआरटी मॉनीटर चलन से बाहर हो गया।

2009 ई. 3डी तकनीक युक्त चपटे मॉनीटर्स

चपटे और पतले मॉनीटर्स के बढ़ते उपयोग के बीच 3डी डिस्प्ले तकनीक का विकास भी होता रहा और 3डी इंटरफेस एव 3डी गेम्स युक्त 3डी मॉनीटर्स का मार्ग प्रशस्त हुआ। कुछ मॉडल्स एवं प्रोटोटाइप भी विकसित हुए।

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