CD/DVD, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क जैसे एक्सटर्नल स्टोरेज के लोकप्रिय होने से पहले कंप्यूटर पर डेटा संग्रहीत करने के लिए फ्लॉपी डिस्क का उपयोग किया जाता था।
इसे आज के दौर शायद ही कहीं उपयोग उपयोग किया जाता होगा, क्योकि ज्यादातर लोग उन्हें पुरानी तकनीक के रूप में जानते हैं। तो आज इस लेख में, हम बताएंगे कि Floppy Disk क्या है और यह कैसे काम करती है।
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फ्लॉपी डिस्क क्या है?
फ्लॉपी डिस्क को “फ्लॉपी” के रूप में भी जाना जाता है यह एक प्रकार का स्टोरेज डिवाइस है जो डेटा को चुंबकीय रूप (magnetically) से संग्रहीत करता है। जिसका उपयोग CD/DVD, पेन ड्राइव जिसे स्टोरेज डिवाइस आने से पहले पर्सनल कम्प्यूटरों पर एक्सटर्नल स्टोरेज के रूप में किया जाता था।
यह दो भागों से बना होता है जिसमे एक तरफ चुंबकीय कोटिंग के साथ एक प्लास्टिक केस और दूसरी तरफ एक लचीली प्लास्टिक शीट जिसे प्लेटर कहा जाता है। फ्लॉपी डिस्क मूल रूप से प्लास्टिक से बनाए गए थे लेकिन वे बाद में धातु में भी उपलब्ध होने लगे।
फ्लॉपी डिस्क का इतिहास
फ्लॉपी डिस्क को पहली बार साल 1971 में लोगो के सामने प्रस्तुत किया गया, जिसमे केवल 80 केबी तक डाटा स्टोर किया जा सकता था और यह एक रीड ओनली डिवाइस था यानी इसके डाटा को केवल पढ़ा जा सकता था। यह डिस्क आकार में 8 इंच था।
हालाँकि फ्लॉपी डिस्क का विकास साल 1967 से डाटा संग्रह के रूप में शुरू हुआ था। जिसमें डेविड नोबल ने आईबीएम के शोध समूह का फ्लॉपी डिस्क के डिजाइन और विकास में नेतृत्व किया।
फ्लॉपी डिस्क का अविष्कार डाटा स्टोरेज और मीडिया के क्षेत्र में सबसे बड़ी खोज साबित हुई। आईबीएम द्वारा बनाई गई सबसे पहली फ्लॉपी को बूट सम्बन्धी कार्यों में निर्देश देने में प्रयोग किया जाता था।
फ्लॉपी डिस्क के प्रकार
फ्लॉपी डिस्क मुख्यतः तीन प्रकार के होते है जो की निम्न है :
8 इंच की फ्लॉपी डिस्क
आईबीएम कंपनी द्वारा लांच किये गए दुनिया के सबसे पहली फ्लॉपी डिस्क का आकर 8 इंच था जिसमे डाटा संग्रहण क्षमता केवल 80 केबी थी। यह एक रीड ओनली स्टोरेज डिवाइस था।
इस मैग्नेटिक लेपित डिस्क का प्रयोग आईबीएम के मेनफ़्रेम कम्प्यूटरों को चालु करने के लिए बूट संबंधी निर्देश देने के लिए किया जाता था। शुरुवात में यह डिस्क पूरी तरह खुला हुआ होता था जिसे बाद में सुरक्षा की दृष्टि से कवर लगाया गया।
5 इंच की फ्लॉपी
दुनिया के सबसे पहले फ्लॉपी डिस्क का आकर 8 इंच होने की वजह से यह वर्ड प्रोसेसिंग मशीनों में प्रयोग करने के उपयुक्त नहीं था। इस समस्या के समाधान के रूप में साल 1976 में Shugart Associates कंपनी ने 5.25 इंच का फ्लॉपी डिस्क तैयार किया जिसकी स्टोरेज क्षमता 98.5 केबी की थी। जो की आगे चलकर 110 केबी से 720 केबी तक उपलब्ध होने लगे।
1970 दशक के अंत होते होते फ्लॉपी डिस्क डाटा स्टोरेज का सबसे बेहतर विकल्प बन गया। क्योकि यह आकर में छोटा होने के साथ साथ 8 इंच फ्लॉपी ड्राइव से सस्ता भी था। जिसकी वजह से बाजार में कई और अन्य निर्माताओं द्वारा भी फ्लॉपी डिस्क का निर्माण जाने लगा।
इसके प्रयोग में सबसे अधिक बढ़ोत्तरी 1978 में एप्पल कंपनी के Apple II कंप्यूटर के लांच के बाद हुआ। जिसमे दो 5-¼ के फ्लॉपी ड्राइव्स थे। जिसके बाद फ्लॉपी ड्राइव डाटा स्टोरेज का मानक बन गया।
3.5 इंच की फ्लॉपी ड्राइव
3.5 इंच की फ्लॉपी ड्राइव को साल 1985 में सोनी कंपनी ने लांच किया था। यह उस वक्त केवल HP -150 या MSX कंप्यूटर में इसकी ड्राइव हुआ करती थी। लेकिन बाद में इसकी लोकप्रियता को बढ़ते देख दूसरी कंपनियों जैसे एप्पल , अमिगा , अटारी , कोमोडोर एस्टी लाइन ने अपनों डिवाइस को 3.5 इंच के फ्लॉपी के साथ करने लगे। जिसके बाद से 3.5 इंच का फ्लॉपी डाटा स्टोरेज का मानक बन गया और सभी डिवाइस इसी फॉर्मेट में आनें लगे।
3.5 इंच की फ्लॉपी ड्राइव में ड्राइव की सुरक्षा के लिए प्लास्टिक कवर लगा रहता है जिसमे धातु की खसकने वाला कवर होता है। परन्तु इसमें सबसे बड़ी समस्या यह होती थी की धातु का कवर बार बार खिसकने से मुड़कर ख़राब होने लगता। जिसे बाद में इस समस्या को दूर करने के लिए इसे प्लास्टिक कवर के साथ बाजार में उतारा गया।
फ्लॉपी डिस्क के घटक
फ्लॉपी डिस्क माइलर का एक लचीला वृत्ताकार टुकड़ा होता है। इस डिस्क में डाटा पढ़ने और लिखने की सुविधा के लिए इसमें दोनों ओर चुंबकीय पदार्थ लेपित होता है। माइलर प्लास्टिक सामग्री से ही बनाई जाती है। फ्लॉपी की अधिकतम भण्डारण क्षमता 1.44 MB मेगाबाइट तक होती है।
इस डिस्क की सुरक्षा के लिए एक चौकोर कवर होता है जिस पर एक खिसकने वाला धातु का कवर होता है। इस कवर के अंदर डिस्क को साफ़ करने वाली ब्रश भी होती है। एक 3.5 इंच आकर के फ्लॉपी डिस्क की मोटाई लगभग 2 mm होती है।
फ्लॉपी डिस्क के केंद्र में धातु की बनी धुरी लगी रहती है जिसके ऊपरी किनारे पर कवर लगा होता है जो डिस्क के रीड राइट करने की आयताकार जगह को ढककर रखता है। इसमें राइट प्रोटेक्ट नौच भी होता है जो एक छोटा सा प्लास्टिक का टुकड़ा या टैब होता है। जिसे एक स्थिति में सेट करने से इसके डाटा को केवल पढ़ा जा सकता है। तथा दूसरी स्थिति में सेट करने से इस पर डाटा रीड और राइट दोनों की जा सकती है।
इसमें डाटा ट्रैक co central वृत्ताकार (circular) पथों में बना होता है और सभी ट्रैक कई भागों में बंटा होता है जिन्हे सेक्टर कहते है। प्रत्येक सेक्टर में 512 बाइट होते है। एक उच्च घनत्व वाली 3.5 इंच की डिस्क में 135 TPI होती है।
TPI का मतलब tracks per inch होता है। TPI ट्रैकक्स उन ट्रैक्स की संख्या होती है जितनी एक डिस्क की क्षमता होती है। जैसे एक 5.25 इंच की फ्लॉपी डिस्क में 48 TPI है, जबकि हार्ड ड्राइव में बहुत अधिक TPI होती है, जो हजारों में हो सकती है।
फ्लॉपी डिस्क के प्रत्येक ट्रैक में कुछ महीन चुंबकीय चिन्ह बने होते है। जिसमे एक दिशा में बने चिन्ह बाइनरी अंक 1 को संदर्भित करते है जबकि उसकी विपरीत दिशा में बने चिन्ह बाइनरी 0 को व्यक्त करते है। इस तरह से माइलर से बने इन चुंबकीय डिस्को पर बाइनरी कोड में कोई भी डाटा या सुचना राइट की जा सकती है।
फ्लॉपी डिस्क कैसे काम करता है?
फ्लॉपी डिस्क के डाटा को देखने या इसमें राइट करने के लिए कंप्यूटर में फ्लॉपी ड्राइव या FDD की आवश्यकता होती है। फ्लॉपी ड्राइव में फ्लॉपी डिस्क को किसी कैसेट प्लेयर में कैसेट लगाने जैसा ही लगाया जाता है। आजकल के कम्प्यूटरों में फ्लॉपी ड्राइव नहीं होते। लेकिन आज से लगभग 20 साल पहले के कम्प्यूटरों में यह सुविधा जरूर होती थी।
फ्लॉपी को ड्राइव में लगाने के बाद वह धुरी को जकड़ कर डिस्क को घुमाना चालू कर देता है। जिससे डिस्क ड्राइव का रीड राइट हैड आगे पीछे चल सके। ताकि ड्राइव फ्लॉपी डिस्क के किसी भी ट्रैक के किसी भी सेक्टर में डाटा या सुचना लिख सकता है या उससे डाटा पढ़ सकता है।
Floppy Disk के उपयोग
फ्लॉपी डिस्क डेटा स्टोरेज डिवाइस के सबसे पुराने साधनों में से एक है। यह 1970 के दशक के आसपास से मौजूद रही है हालाँकि यह अब अप्रचलित हो गई है। पहले फ्लॉपी डिस्क कंप्यूटर पर डेटा संग्रहीत करने के लिए सबसे बेहतर उपकरण हुआ करता था।
इसे मूल रूप से कंप्यूटर के लिए एक्सटर्नल स्टोरेज डिवाइस के रूप में उपयोग किया जाता था। इसका उपयोग संगीत और वीडियो स्टोर करने में भी किया जाता था। परन्तु इसकी स्टोरेज क्षमता बहुत काम होती है।
FAQ
एक फ्लॉपी डिस्क में दो साइड होती है।
3.5 इंच के फ्लॉपी डिस्क में अधिकतम भण्डारण क्षमता 1.44 मेगाबाइट तक होती है।
CD/DVD, हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव जैसेअधिक स्टोरेज क्षमता वाले स्टोरेज माध्यम के आने के बाद आज के दौर में फ्लॉपी डिस्क का प्रयोग बिलकुल भी नहीं किया जाता।