एंटीवायरस क्या है और कैसे काम करता है?

टेक्नोलॉजी, मेडिकल या साइंस से लेकर लगभग सभी क्षेत्रो में कंप्यूटर का इस्तेमाल होता है। आज के समय में एक जगह से दूसरी जगह डिवाइस और संचार माध्यमों से डाटा आदान प्रदान करना बहुत ही आसान हो गया है। जैसे इंटरनेट, पेन ड्राइव, CD आदि।

लेकिन, डाटा आदान प्रदान करने या इंटरनेट के उपयोग के दौरान मैलवेयर और वायरस अटैक का भी खतरा होता है। जिनसे बचने के लिए कंप्यूटर में सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर एंटीवायरस का होना बहुत जरुरी है। साथ ही लैपटॉप, कंप्यूटर को सुरक्षित कैसे रखें इसके बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। तो आइये जाने एंटीवायरस क्या है और कैसे काम करता है।

Antivirus क्या है

एंटीवायरस एक ऐसा सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जिसे विशेष रूप से कंप्यूटर और मोबाइल जैसे प्लेटफॉर्म्स को मैलवेयर और कंप्यूटर वायरस के हमलो से रक्षा करने के लिए बनाया गया है। मैलवेयर, यानि वे सॉफ्टवेयर जो कंप्यूटर में इंस्टॉल सॉफ्टवेयर को नुकसान पहुंचाने या डाटा चुराने के लिए बनाये गए होते है। जिनमे वायरस , एडवेयर, स्पाई वेयर, hijackers, ट्रोजन जैसे प्रोग्राम्स होते है।

ज्यादातर एंटीवायरस सॉफ्टवेयर में वायरस और मैलवेयर को पता लगाने, जांचने और ख़त्म करने जैसी सभी खासियतें होती है। हालाँकि दूसरी तरह के एंटीवायरस सॉफ्टवेयर भी होते है जिनके कार्य करने का तरीका अलग होता है, जैसे विशेष प्रकार के वायरस से सुरक्षा के लिए।

कंप्यूटर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एंटीवायरस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करना उचित होता है। ताकि डाटा सेफ रहे। वैसे एंटीवायरस सॉफ्टवेयर मुफ्त और पेड यानी लइसेंस्ड वर्शन में उपलब्ध होते है। जिन्हे आप अपनी सहूलियत और जरूरतों के हिसाब से चुन सकते है।

एंटीवायरस सॉफ्टवेयर का इतिहास

दुनिया का पहला एंटीवायरस सॉफ्टवेयर ‘जी डेटा सॉफ्टवेयर’ कंपनी के संस्थापकों, एंड्रियास लुनिंग और काई फिगेज ने Atari St कम्यूटर प्लेटफार्म के लिए साल 1987 में बनाया था। हालाँकि कम्प्यूटर्स में वायरस के हमले की शुरुवात 70 के दशक से ही हो गया था।

पर 80 के दशक तक कंप्यूटर वायरस का शुरुवाती दौर था इसलिए उनसे कंप्यूटर क्रैश और डाटा को हैक नहीं किया जा सकता था। लेकिन 90 के दशक के आते आते बहुत से हैकर्स और प्रोग्रामर्स, डाटा (जैसे अकाउंट डिटेल्स ) चोरी करके पैसा कमाने में दिलचस्पी लेने लगे।

Antivirus कैसे काम करता है

सिग्नेचर, बिहेवियर और Heuristic-based detection इन तीनो तरीको से ही एंटीवायरस सॉफ्टवेयर मैलवेयर और वायरस की पहचान पहचान करता है। सिग्नेचर बेस्ड डिटेक्शन में एंटीवायरस सॉफ्टवेयर, फाइल की तुलना अपने डेटाबेस में मौजूद वायरस प्रोग्रामो से करता है।

वही बिहेवियर डिटेक्शन में एंटीवायरस मैलवेयर को पहचानने की कोशिश नहीं करता बल्कि कंप्यूटर में इन्सटाल्ड प्रोग्राम्स के संदेहजनक गतिविधि करने पर उन्हें मॉनिटर कर यूजर को खतरे की सुचना देता है।

Antivirus Software की विशेषताएँ

कुछ लोकप्रिय एंटीवायरस सॉफ्टवेयर के नाम जिन्हे आप पहले से जानते ही होंगे : NPAV, QuickHeal, McAfee, Norton, Kaspersky और Avast. इन सॉफ्टवेयर में ढेरो विशेषताएँ होती जिन्हे आप निचे देख सकते है।

1) Anti-virus Upgrades : आजकल नए नए कंप्यूटर वायरस बनते रहते है। तो ऐसे में कंप्यूटर में एंटीवायरस प्रोग्राम का अपडेटेड होना अत्यधिक आवश्यक होता है। इसलिए इसके ऑटोमेटिकली अपडेट सेटिंग को चालू करें।

2) On-Demand Scan : यदि आप अपने कंप्यूटर में किसी भी एक या एक से अधिक फाइल, फोल्डर या ड्राइव को ही स्कैन करना चाहते है तो आप केवल उन फाइल/फोल्डर को ही अलग से स्कैन कर सकते है।

3) Scheduled Scanning : वायरस स्कैन के कार्यक्रम को schedule कर सकते है। जो की डिवाइस के रीस्टार्ट या बूट होने पर ऑटोमेटिकली एक्टिव हो जाएगा।

4) Email shield : इसके माध्यम से ईमेल में आने वाले मेल्स को स्कैन होते है। और उनमे किसी भी तरह के इन्फेक्शन होने पर हमें सूचित करता है।

5) Web shield : ये आपको, इंटरनेट इस्तेमाल करते समय डाउनलोड या ब्राउज़िंग करते वक्त हो सकने वाले संभावित एवं संदेहजनक हमलो से बचाता है।

6) Anti-virus Technical Support : सभी एंटीवायरस में टेक्निकल सपोर्ट की सुविधा होती है। जिसके माध्यम से आप उस सॉफ्टवेयर से सम्बंधित समस्याओ के निराकरण के लिए जानकारी साझा कर सकते है।

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