15 Tech Myths: टेक्नोलॉजी से जुड़ीं गलतफहमियां

यह बिलकुल सच है की आज हमारा जीवन एक तरह से उलझ सा गया है जंहा टेक्नॉलजी के क्षेत्र में हर दिन बदलाव होने के साथ साथ नए तकनीक ईजाद होते है जिसकी वजह से हमें समय के साथ कदम से कदम मिलकर चलने के लिए अपडेटेड रहना अनिवार्य हो गया है। इसलिए इस लेख में हमने आपके लिए 101 तकनीकी मिथक की सूचि तैयार की है जिसे लोग आज भी सच मानते हैं। तो आइये जाने 101 तकनीकी मिथक (tech myths) को :

Table of contents

टचस्क्रीन का आविष्कार एप्पल कंपनी ने किया

एप्पल कंपनी ने अपना पहला आईफोन साल 2007 में लांच किया था जिसमें हमने पहली बार आज इस्तेमाल हो रहे टचस्क्रीन को देखा था। लेकिन निश्चित रूप से टच स्क्रीन का आविष्कार एप्पल ने नहीं किया था। क्योकि इससे कई साल पहले 7 अक्टूबर 1975 में Dr. George Samuel Hurst ने रेसिस्टिव टचस्क्रीन को अमेरिका में पेटेंट कराया था।

शुरुवाती रेसिस्टिव टचस्क्रीन में आज की तरह जेस्चर सेंसिंग फीचर्स नहीं हुआ करते थे वो सिंगल टच को ही सेंस कर पाते थे, जिसे निनटेंडो DS जैसे डिवाइस में देखा जा सकता है।

मल्टी-टच का आविष्कार एप्पल ने किया

कंपनी के पहले आईफोन लांच के दौरान स्टीव जॉब्स ने कहा था की “हमने नै मल्टी-टच तकनीक का अविष्कार किया है”, लेकिन उनके कहने मतलब स्मार्टफोन टचस्क्रीन के क्षेत्र में था। क्योकि मल्टी टच तकनीक का आविष्कार आईफोन के आने के पहले ही हो चूका था, जिसका उन्होंने अधिग्रहण करके विभिन्न अनुप्रयोग और उपकरणों में लागू किया।

इसलिए यह सच है की एप्पल कंपनी ने खुद से मल्टीटच तकनीक का आविष्कार नहीं किया था। यह तकनीक असल में 1982 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो में हुआ जिसका श्रेय निमिष मेहता को जाता है।

काले रंग का वॉलपेपर बैटरी बचाता है

सोचने पर हमें ऐसा लगता है की डिस्प्ले में ब्लैक स्क्रीन होने पर वह पावर डाउन स्टेज में होगा, जिसकी वजह से ब्लैक पिक्सेल में ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता होगा। या वाइट ज्यादा रौशनी करती है इसलिए वाइट के तुलना में ब्लैक पिक्सेल में कम ऊर्जा या ऊर्जा की खपत ही नहीं होती होगी। इस तरह से सोचने पर हमें लगता है की काले रंग का वॉलपेपर बैटरी बचाता है।

यह कथन केवल AMOLED जैसे कुछ आधुनिक डिस्प्ले टेक्नोलॉजी पर ही लागु होती है,क्योकि अधिकतर स्मार्टफोन्स में LCD का प्रयोग होता है जो की असल में लगातार जल रहे बैकलिट होते हैं चाहे डिस्प्ले में जो भी रंग हो। काले रंग का होना केवल काले रंग का ब्लॉक होना होता है ना की लाइट का बंद होना। इसलिए ऊर्जा की खपत में कोई असर नही होता है।

स्मार्टफोन में ज्यादा सिग्नल बार का मतलब है बेहतर सिग्नल

कई बार कॉल ड्राप होने पर आप अपने फ़ोन को इसलिए देखते हो की कहीं सिग्नल तो कम नहीं हो गया। सिग्नल हमें यह नहीं दिखता है की रिसेप्शन कितना बेहतर है बल्कि यह टावर से आने वाले सिग्नल स्तर को दर्शाता है। सिग्नल की असल गुणवत्ता उस वक्त टावर से सीधे जुड़े रिसीवर्स की संख्या या एक साथ नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे लोगों की संख्या जैसे अन्य कारकों पर निर्भर करता है।

Apple ने पोर्टेबल म्यूजिक प्लेयर का आविष्कार किया

सोनी के वॉकमेन की तरह एप्पल की आईपॉड डिजिटल म्यूजिक के क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हुआ। यदि पोर्टेबल म्यूजिक प्लेयर की बात करें तो, 1999 में बाजार में आने के बावजूद यह पहला पोर्टेबल म्यूजिक प्लेयर नहीं था। जबकि हार्ड डिस्क आधारित एप्पल की पहली जनरेशन की आईपॉड अक्टूबर 2001 में आई।

सबसे पहला पोर्टेबल म्यूजिक प्लेयर का श्रेय Saehan Infosystem को जाता है जिन्होंने 1998 में MPMan लांच किया था।

कोई नहीं जानता कि आपने इन्कॉग्निटो मोड मे क्या किया

क्रोम और सफारी जैसे अधिकतर ब्राउज़र में प्राइवेट ब्राउज़िंग के लिए इन्कॉग्निटो मोड की सुविधा होती है। जिसका इस्तेमाल लोग अपनी ब्राउज़िंग एक्टिविटीज को दुसरो से छिपाने के लिए करते हैं। इसलिए आप सभी को लगता होगा की इस मोड को चालू करने से आपके कंप्यूटर या स्मार्टफोन में कूकीज या हिस्ट्री स्टोर नहीं होती होगी।

इन्कॉग्निटो मोड चालू होने के बावजूद ISP और नेटवर्क एडमिन आपकी एक्टिविटीज को देख सकते हैं। हालाँकि आप इसका इस्तेमाल दूसरों के कंप्यूटर पर इमेल्स या नेट बैंकिंग में प्राइवेसी के लिए कर सकते है। और यदि आप सही में पूरी तरह से प्रवासी चाहते है तो टोर ब्राउज़र या वीपीएन का इस्तेमाल करें।

मैक विंडोज की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं

अक्सर आपने अपने दोस्तों से सुना होगा की कंप्यूटर सुरक्षा के मामले में मैक ओएस, विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना में बेहतर और सुरक्षित है। यह बहस कंप्यूटिंग के शुरुवात से चल रहा है। इस मिथक का जन्म इस तथ्य से हुई की विंडोज में होने वाले वायरस की संख्या मैक वायरस की तुलना कहीं अधिक है।

दोनों ओएस को इस्तेमाल करने वालों की संख्या की देखा जाए तो विंडोज को सबसे ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं। असल में कंप्यूटर की सुरक्षा हमेशा यूजर के गतिविधियों पर निर्भर करता है। विंडोज हो या मैक, सेफ ब्राउज़िंग उपायों और लीगल सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके हर कोई सुरक्षित रह सकता है।

विंडोज में शिफ्ट+डिलीट का मतलब है (या रीसायकल बिन से हटाना) डेटा हमेशा के लिए चला गया

रीसायकल बिन या ट्रैश से डिलीट करने, फॉर्मेट करने या दूसरे मिटाने के तरीके असल में डाटा को हमेशा के डिलीट नहीं करते। क्योंकि ये डाटा उन सेक्टर में से नहीं हटा होता है, ये सेक्टर केवल एम्प्टी मार्कड हुए होते हैं। चूँकि बाद में जब स्पेस की आवश्यकता होती है तो नया डाटा के लिए, हार्ड डिस्क इसपर डाटा राइट करता है। इन सेक्टर्स की वजह से ही रिकवरी संभव होता है। तो यदि आप डाटा को हमेशा के डिलीट करना चाहें तो इसके लिए विशेष प्रकार के सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं।

टेकऑफ और टचडाउन के दौरान अपने फोन को चालू रखना खतरा है।

सभी फ्लाइट अनाउंसमेंट में टेक ऑफ के दौरान मोबाइल फ़ोन्स और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को बंद करने के लिए कहा जाता है, और कभी कभी तो लैंडिंग के दौरान भी ऐसा कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है की इन डिवाइस के सिग्नल प्लेन के इलेक्ट्रॉनिक और गाइडेंस सिस्टम में बढ़ा डाल सकता है। अगर सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो ऐसा संभव है, लेकिन प्रैक्टिकली देखा जाए तो ऐसा संभव नहीं है।

एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल खुद के रिज़र्वड फ्रीक्वेंसीज़ का उपयोग करता है, जो की सेलफोन नेटवर्क से बिलकुल अलग होते हैं। प्लेन में अधिक संख्या में लोग भूल जाते हैं या जानबूझकर अपना फ़ोन बंद नहीं करते, इसके बावजूद आजतक इसकी वजह से कोई दुर्घटना नहीं हुआ है। लेकिन फिर भी, आप सजग रहते हुए अपना फ़ोन फ्लाइट में बंद रखें, और वैसे भी आपको वहां नेटवर्क नहीं मिलेगा, इसलिए बस इसे बंद करें और बैटरी बचाएं।

अपने फोन को केवल उसके बंडल चार्जर से चार्ज करें

सभी नए फ़ोन्स कंपनी के चार्जर के साथ आते हैं

सभी नए फ़ोन्स कंपनी के चार्जर के साथ आते हैं, जिनका इस्तेमाल फ़ोन को चार्ज करने के लिए किया जाता है, लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है की आप दूसरे चार्जर का इस्तेमाल ना करें। चार्जर केवल एक ट्रांसफार्मर होते हैं जो आपके घर के AC सप्लाई को कुछ वोल्टेज में अधिकतम एम्पीयरेज के साथ डायरेक्ट करंट में बदलता है। वोल्टेज निर्धारित करता है की करंट कितना तेज प्रवाह होगा और एम्पीयरेज दर्शाता है की कितना करंट है।

कंपनी भरोसेमंद होती है और फ़ोन के स्पसिफिकेशन के मिलते जुलते चार्जर देती है, इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है की आप किसी दूसरे कंपनी का चार्ज इस्तेमाल नहीं कर सकते।

पेट्रोल पम्पस में स्मार्टफोन्स इस्तेमाल करने से आग लग जाती है

पेट्रोल पम्पस पर मोबाइल ना इस्तेमाल करने वाले चिन्हों को देखकर यह मिथ सबके मन में बस गया है की पेट्रोल पम्पस में स्मार्टफोन्स इस्तेमाल करने से आग लग सकती है।

फोन के इलेक्ट्रॉनिक घटक से चिंगारी के कारण आग या विस्फोट के खतरे से बचने के खिलाफ चिन्हों का इस्तेमाल निवारक कार्य माना जाता है। निश्चिंत रहें, क्योंकि फोन की बैटरी को चिंगारी पैदा करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है, और यदि यह जानने के बाद भी डर लगता है, तो अपनी कार या बाइक में लगी बड़ी बैटरी के बारे में सोंचकर देखें।

ऑटो ब्राइटनेस बैटरी बचाता है

सभी स्मार्टफोन्स में ऑटो ब्राइटनेस विकल्प होती है, जो की आसपास की लाइट के अनुसार फ़ोन के ब्राइटनेस को कम या ज्याद करती है। फ़ोन की ब्राइटनेस हमेशा ज्यादा या क़म रहने से यह विकल्प बेहतर है, यह आपके आँखों के लिए बेहतर हो सकती है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नही है की यह फ़ोन की बैटरी के लिए भी बेहतर है।

जब फ़ोन काम ब्राइटनेस के साथ चल रही होती है तो प्रोसेसर लाइट सेंसर से प्राप्त डाटा के अनुसार ब्राइटनेस को अनुकूल करने के लिए अतिरिक्त कार्य करते रहता है। जिसकी वजह से फ़ोन की बैटरी बचत तो बिलकुल भी नहीं होती है।

Android, iOS की तुलना में कम सुरक्षित है

ऐप्पल यूजर लगता है कि उनका कीमती आईफोन एंड्रॉइड की तुलना में अधिक सुरक्षित है। वास्तव में, कमजोरियां सभी डिवाइस में मौजूद हैं जो किसी भी सिस्टम से समझौता कर सकती हैं, चाहे वह एंड्रॉइड के स्टेजफराइट बग्स हो या आईओएस पर यिस्पेक्टर।

ऐप्पल के पास हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और ऐप मार्केटप्लेस के अपने इकोसिस्टम पर कड़ा नियंत्रण है और एक बार में सभी उपकरणों के लिए एक साथ अपडेट जारी करने की क्षमता है।

इसके विपरीत, एंड्रॉइड निर्माताओं की बढ़ती संख्या की वजह से बाजार में केवल सबसे चतुर कंपनियां ही सुरक्षा पैच का वादा करती हैं। बाजार में 80% के हिस्सेदारी होने के बावजूद, एंड्रॉइड निश्चित रूप से 80% से कम कमजोरियों को आकर्षित करता है। डेस्कटॉप और लैपटॉप के ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ, यहां तक कि मोबाइल पर भी किसी भी ओएस को दूसरे की तुलना में अधिक सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। यह अक्सर यूजर पर निर्भर करता है।

आपको हमेशा अपनी बैटरी को फिर से चार्ज करने से पहले पूरा इस्तेमाल करना चाहिए

सभी चीजों की लिफस्पान होती है और बैटरी को इसके चार्जिंग साइकिल से मापा जाता है। निकल कैडमियम जैसे पुराने बैटरीज में यह कहा जा सकता है की बैटरी की क्षमता को मेन्टेन करने और इसकी क्षमता को काम होने से बचने के लिए बैटरी चार्ज करने से पहले उसे पूरी तरह से इस्तेमाल कर लेना चाहिए।

आजकल लिथियम आयन बैटरीज इस्तेमाल किये जाते हैं, जिसमे हमें यह सोंचने की जरुरत नहीं है की फुल चार्ज साइकिल 100 प्रतिशत बैटरी उपयोग के रूप में गिना जाता है। यानि कि अगर यह समय से पहले रिचार्ज होने से निकाल दिया जाये – यदि आप अपनी बैटरी को दो बार 50% तक डिस्चार्ज करते हैं, और इसे दोनों बार पूरा चार्ज करते हैं, तो यह केवल एक पूर्ण चार्ज साइकिल के रूप में गिना जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई चीज नहीं है

कुछ लोग आज भी मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग एक झूठ है। उनका मानना है कि मानव कार्य पूरे ग्रह को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, और यह कि ग्रीनहाउस प्रभाव, समुद्र के स्तर में वृद्धि, और सतह के तापमान सभी पूरी तरह से प्राकृतिक हैं। या शायद, सभी डेटा सौर पैनल बेचने वाले डेंड्रोफिलिया पागल लोगों द्वारा एक विस्तृत निर्माण है। लेकिन यदि आप भी ऐसे सोंचते है तो जाग जाइये ग्लोबल वार्मिंग का कारण हम मनुष्य ही हैं।

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